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  • गरिमा मिश्रा

बदलते रंग

भारत एक अत्यंत प्राचीन देश है जो कभी 'सोने की चिड़िया' कहलाता था। इस देश के उत्तर में हिमालय प्रहरी बनकर खड़ा है, अनेक नदियों अपने शीतल जल से इसे सींचती हैं, अनेक ऋतुएँ बारी-बारी से आकर इसका शृंगार करती हैं। हमारे देश पर प्रकृति की बहुत कृपा है। भौगॊलिक दृष्टि से भारत अत्यंत संपन्न है। सुंदरता की दृष्टि से भारतअद्वितीय है। इस सबके बावजूद भारत आज जिन अनेक समस्याओं से ग्रसित है, उनमें से सबसे भयंकर एवं विकराल समस्या है - प्रदूषण

जब प्राकृतिक वातावरण के संतुलन में घातक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है और वह प्राणी जगत के लिए घातक सिद्ध होने लगते हैं, तो उसे प्रदूषण कहा जाता है।

पर्यावरण और मनुष्य एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात मनुष्य ने भले ही आज विज्ञान और तकनीक में बहुत तरक्की कर ली है परंतु प्रकृति ने जो हमें उपलब्ध करवाया है उसकी कोई तुलना नहीं है। इसलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन करने से बचना चाहिया। वायु, जल, अग्नि, आकाश, थल ऐसे पाँच तत्व है, जिस पर मानव जीवन टिका हुआ है और यह सब हमें पर्यावरण से ही प्राप्त होते हैं।

मानव ने विकास के लिए उद्योग स्थापित किए , यातायात के लिए नए-नए वाहन बनाए, कृषि में खाद व कीटनाशकों का प्रयोग किया परंतु इन सब प्रक्रियाओं से प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहा है।

वर्तमान युग में प्रदूषित वातावरण मानव - जीवन के लिए भयकंर अभिशाप बन गया है। नदियाँ कलुषित हो रही हैं, वन वृक्षों से रहित हो रहे हैं, मिट्टी का कटाव बढ़ने से बाढ़ की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। कल-कारखानों और वाहनों के धुएँ से वायु विषैली हो रही है। वन्य- प्राणियों की जातियाँ भी नष्ट हो रही हैं। वैजानिको के अनुसार वृक्षों एवं वनस्पतियों के अभाव में मनुष्यों के लिए जीवित रहना असंभव प्रतीत होता है। पत्र, पुष्प, फल, काष्ठ, छाया एवं औषधि प्रदान करने वाले पादपों एवं वृक्षों की उपयोगिता वर्तमान समय में पूर्वापेक्षया अधिक है। ऐसी परिस्थिति में हमारा कर्तव्य है कि हम पर्यावरण के संरक्षणार्थ उपाय करें। वृक्षों के रोपण, नदी जल की स्वच्छता, ऊर्जा के संरक्षण , वापी, कूप तड़ाग, उद्यान आदि के निर्माण और उनको स्वच्छ रखने में प्रयत्नशील हो ताकि जीवन सुखमय एवं उपद्रव रहित हो सके ।

वायु प्रदूषण की समस्या विश्व के लगभग हर देश में बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान में, यह समस्या भारत की राजधानी दिल्ली में विकट रूप में दिखाई दे रही है। दिल्ली में प्रदूषण के अनेक कारण है परंतु दो प्रमुख कारण ऐसे हैं जो मनुष्यों द्वारा जानबूझ कर किए जाते हैं। पहला कारण है दीपावली में पटाखे जलाना। सरकार के बार-बार मना करने के बावजूद, लोगों ने पटाखों को जलाया । जिससे, दिल्ली कि वायू में कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा बढ़ गई। यह मेरे समझ के परे है कि पटाखे जलाने से कैसा सुख प्राप्त होता है अगर यही पटाखे बाद में हमारे वायु में घुल कर उसे ज़हरीला बना देता है।

दूसरा प्रमुख कारण है पंजाब और हरियाणा में जलायी जाने वाली पराली। क्योंकि अक्टूबर और नवम्बर में किसान को रबी की फसल की बुआई के लिए खेत को खाली करना होता है इसलिए किसान

खेत में लगी पराली को जमीन से काटने की बजाय उसमें आग लगा देते हैं जिससे खेत खाली हो जाता है और गेहुँ की बुआई कर देते हैं। इसी जलायी गई पराली का धुंआ दिल्ली समेत उत्तर भारत के अन्य राज्यों में वायु को प्रदूषित कर रहा है। किसानों को समझना हेगा कि यह न उनके लिए और न हीं उनकी फसल के लिए लाभदायक है। अगर इसी प्रकार वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जाएगा तो वह समय दूर नहीं जब मनुष्यों को स्थायी रूप से श्वासयंत्र का प्रयोग करना होगा।

हम सब जानते हैं कि नदियाँ हमारे भारत को अपने शीतल जल से सींचती है तथा मनमोहक बनाती है। नदियाँ भारत की धरोहर हैं। नदियाँ कई जलीय जीव-जन्तु को आश्रय प्रदान करती हैं। भारत में लॉकडाउन के समय कहा जा रहा था कि हमारी नदियों का जल पवित्र हो गया है परंतु अनलॉक के कुछ ही हफ्ते बाद, हमारी नदियाँ एक बार फिर प्रदूषित हो गईं। नदियों में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया कि अब हमें एक ऐसी यमुना दिखती है जिस पर ज़हरीले झाग से आवरण है। गंगा , यमुना समेत अन्य नदियों में पिछले एक महीने से ज़हरीले झाग का प्रकोप नज़र आ रहा है। प्रदूषित नदियाँ उनमें रह रहे जीव एवं उन मनुष्यों के लिए जो इन नदियों पर निर्भर हैं, बिल्कुल भी लाभदायक नहीं है।

मनुष्यों को समझना होगा कि ऐसे विकास का कोई लाभ नहीं है अगर हम अपने पर्यावरण का दोहन कर रहे हैं। अगर हम अभी न सम्भले तो यह हमारे लिए ही घातक सिद्ध होगा।

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